स्वतंत्र हो के भी.…
पर अफ़सोस भारत स्वतंत्र हो के भी अधीन हो गया।
ये पीढ़ी जो आज़ादी की कीमत तो नहीं जानती,
पर "Happy Independence day" लिखने में अपनी शान है मानती।
आज़ादी वह जोश, नशा और उन्माद का नाम है जिसके लाखोँ दीवाने थे,
उस पुण्य बलि वेदी पर मिटने वाले न जाने कितने परवाने थे।
मर-मिट के चले गए वो अब क्या कुछ बता पाएंगे,
ये बीड़ा हम पर है कि अपनी आज़ादी को कब तक बचा पाएंगे।
जब भारत आज़ाद हुआ तब सबने ख़ूब "स्वराज" को तोला,
न जाने कितने देश बन गए, क्या किसी ने ये नहीं सोंचा?
इस धरा की 'गंगा-जमुनी' संस्कृति थी साम्प्रदायिक सौहार्द की निशानी,
यहां कभी कुछ लोगों ने सोंचा था कि होगी एक भाषा 'हिंदुस्तानी'।
चलते चलते इन ६८ वर्षों में कहीं दूर निकल आये हैं,
इन्ही राहों में कहीं 'मिले सुर मेरा तुन्हारा' को पीछे छोड़ आये हैं।
कैसे देशवासी है हम, जिन्हे न तो गणतंत्र का मतलब न आज़ादी के मायने हैं पता,
अब किस मुँह से कहें, भारत स्वतंत्र हो गया.… स्वतंत्र हो गया।
अगर अब भी देनी ही है बधाई तो थोड़ा और प्रयत्न करो,
इस आज़ादी को जानो, समझो और एक "आज़ाद" भारत का सृजन करो।
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