सरपट सी चलती,
चलते हुए दौड़ती,
गलियाँ…
आज रुकी पड़ी हैं,
उन पर दौड़ने वाले बच्चे,
चलने वाले लोग,
कहाँ लापता हो गए।
गलियों ने पीछा तो किया,
पर तंग होते-होते हांफ गईं,
अब अपने अकेलेपन को…
किसी की राह देखते हुए काटती हैं।
भूले-बिसरे ही सही…
कोई राहगीर आए,
और वे फिर से चलने लगे।
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